शब्दों की ताकत तो जगजाहिर है पर किसी पेंसिल से निकली आड़ी तिरछी रेखाएं क्या गुल खिला सकती हैं, यह काटूüनिंग की दुनिया में आने पर ही पता लगता है। शब्द अगर नश्तर की तरह चुभ सकते हैं तो रेखाएं ऐसा जख्म देती हैं जो लंबे समय तक टीस देता रहता है। आप लोगों की तरह ही एक आम आदमी अपने आसपास जो कुछ घटित होता है, उसे चुपचाप देखता हूं। यह चुप्पी तब टूटती है, जब मेरे हाथ में पेंसिल आ जाती है।
1 comment:
gul toh khilenge ...
gulon ke lie ye desh bada mufeed hai...
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