Sunday, June 29, 2008

Friday, June 13, 2008

मनमोहन और महंगाई


मेरा पहला दिन

शब्दों की ताकत तो जगजाहिर है पर किसी पेंसिल से निकली आड़ी तिरछी रेखाएं क्या गुल खिला सकती हैं, यह काटूüनिंग की दुनिया में आने पर ही पता लगता है। शब्द अगर नश्तर की तरह चुभ सकते हैं तो रेखाएं ऐसा जख्म देती हैं जो लंबे समय तक टीस देता रहता है। आप लोगों की तरह ही एक आम आदमी अपने आसपास जो कुछ घटित होता है, उसे चुपचाप देखता हूं। यह चुप्पी तब टूटती है, जब मेरे हाथ में पेंसिल आ जाती है।